भारत में जातिगत विभाजन को समाप्त करने के कोई कितने भी दावे करे, लेकिन उसे खत्म करना इतना आसान भी नहीं है.अब बिहार को ही ले लें,सामाजिक पृथकता से कोसों दूर इस विभाग में,जाति के आधार पर बने पुलिस बैरक आज भी ‘छुआछूत’ की कहानी कहते हैं।

पुलिस बैरकों में बाहर से वैसे कोई जातिगत वर्गीकरण के निशान नहीं है, लेकिन पुलिसकर्मियों से बातचीत पर पता चलता है कि यहाँ भी प्रमुख जातियों राजपूत, ब्राह्मण, यादव, हरिजन के आधार पर भेदभाव किया जाता हैं। और तो और यहाँ जाति आधारित मेसें भी बनाई गई हैं।

पुलिसकर्मियों की वर्दी के एक रंग होने के बावजूद, मनभेद,जाति के आधार पर बने हुए हैं। कई बार इससे कोर्डिनेशन फेलियर की नौबत आती है,जिसका फायदा अपराधी उठाते हैं। बैरकों में जाति के आधार पर समूहीकरण किया गया हैं। राज्य के पुलिसकर्मी अपनी जाति के लोगों के साथ रहने में अधिक सुकून महसूस कर रहे हैं। भले ही उनकी वर्दी को भेदभाव पसंद ना हो।
राज्य में 40 पुलिस जिलों में सिपाही और हवलदार स्तर के पुलिसकर्मियों के रहने के लिए अलग-अलग पुलिस लाइनों में बने बैरकों में यह विभाजन आपसी सहमति के आधार पर बना हुआ है। सिपाही और हवलदार स्तर के करीब 70 हजार पुलिसकर्मी राज्य में हैं,इनमें से 30 हजार से अधिक लोग बैरकों में रहते हैं। इन बैरकों को तीन भागों में डिवाइड गया है, और सभी भागों में आवागमन के अलग दरवाजे बने हुये हैं।

ऐसा माना जाता है की यहाँ कुल मिला कर 14 पुलिस बैरक है, जिनमे से बैरक नंबर 1 भूमिहार और यादव लोग साझा करते है, बैरक 2 ब्राह्मणों , 3-4 राजपूत कांस्टेबल के लिए, और 6-7 मुस्लिम और ओबीसी पुलिस कांस्टेबल के लिए रिजर्व है।
यहाँ पर कुल मिलाकर 11 किचेन है जिनमे ब्राह्मण, राजपूत, मुस्लिम और भूमिहारों के लिए एक-एक और यादव के लिए 2, और एसटी-एससी के लिए 3 अलग से दिये गए है।

वहाँ के एक कांस्टेबल का कहना है की अगर किसी नए कांस्टेबल की भर्ती होती है तो वह 1-2 दिन ही किसी दूसरे कास्ट के किचेन मे जाकर खाना खा सकता है,उसके बाद उसे अपनी कास्ट के किचेन में ही खाना पड़ता है।
इस पर पदाधिकारी और पुलिस संघ का मानना हैं,कि जातिगत आधार पर बनी ‘बैरक’ परंपरा की निशानी है। क्योंकि जब भी कोई नई बहाली के बाद आता है तो वह अपने गांव, शहर और जाति के आधार पर ही समूह में रहना चाहता है,यह व्यक्तिगत पसंद है और इसे स्वेच्छा से अपनाया जा रहा है। इस परंपरा का कितना फायदा ‘बिहार पुलिस’ उठा पा रही है कहना काफी मुश्किल है,यथा स्थिती से आप संभी वाकिफ हैं,हाँ इसका फायदा पुलिस के ध्रुवीकरण में,स्थानीय राजनेता अवश्य उठा पा रहे हैं।

हमारी देश से और ख़ास तौर पर युवाओं से अपील है की,यदि देश को ‘निर्बाधतः’ आगे बढ़ाना है तो इस तरह के जातिगत भेदभाव से परहेज करना होगा,जिससे देश का हर नागरिक एकत्व के भाव से राष्ट्र को परम वैभव के शिखर पर पहुंचाने में अपना ‘सार्थक’ योगदान दे सके।