कई लोग होते हैं जो सब कुछ सही सलामत होने के बावजूद भी जिंदगी से हार जाते हैं और आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं। लेकिन यदि हौसले बुलंद हों तो कुदरत के बीच से ही संघर्ष का रास्ता भी निकल आता है।
ईश्वर ने चंपेश्वर को हाथ नहीं दिए पर हौसला बुलंद दिया। चपेश्वर ने अपनी विकलांगता पर विजय हासिल की। पैरों में कलम फंसाकर लिखना सीखा। मजबूत इरादों से ही 12वीं की कक्षा अच्छे नंबरों से पास की। इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला पाया। अब उसने आईएएस बनने का लक्ष्य तय किया है।
चंपेश्वर का जुनून देखकर अज्ञात मददगार सामने आए और गरीब के बेटे को इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिलाया। अब उसकी पढ़ाई का जिम्मा भी यही शख्स उठा रहे हैं। ऐसा संभव हो पाया चंपेश्वर के बुलंद हौसले देखकर।
चंपेश्वर जितनी तेजी से पैरों में कलम फंसाकर कागज पर लिख सकता है, उतनी ही तेजी से उसके अधूरे हाथ कम्प्यूटर पर नाचते हैं। रायपुर से 40 किलोमीटर दूर राजिम के पास कौंदकेरा के गरीब किसान श्यामू का बेटा चंपेश्वर अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है।
चार साल की उम्र में कौंदकेरा के सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल में दाखिल कराया गया। स्कूल में सब बच्चों को हाथ से लिखना सिखाया गया। यह देखकर चंपेश्वर ने अपने पैरों की उंगलियों को हथेली बना लिया। पैर में पेन को पकड़कर उसने लिखना शुरू किया।
स्कूल के शिक्षक भी उसकी लिखावट के कायल हो गए। शुरु में परीक्षा के दौरान समय पर पूरे सवालों को निर्धारित समय में हल करना उसके लिए चुनौती थी। कुछ शिक्षकों को उस पर दया आई।
उन्होंने चंपेश्वर को परीक्षा देने के लिए अतिरिक्त समय की सिफारिश प्राचार्य से की। इस बात का पता चलने पर उसने उसने परीक्षा में अतिरिक्त समय लेने से मना कर दिया।
उसे दया का पात्र बनना गवारा नहीं हुआ। तब से लेकर अब तक परीक्षा में सामान्य श्रेणी के विद्यार्थियों के साथ परीक्षा हाल में बैठकर पर्चा दे रहा है। अपना नाश्ता भी अपने हाथ से ही करता है।
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इनके हौसले को सलाम