चीन से मुकाबले की राह



चीन से मुकाबले की राह

मुगलों और अंग्रेजों के बाद लगता है कि अब चीन भी भारत की घेरेबंदी कर हमें गुलाम बनाने जा रहा है। वैसे भी चीन का मानना है कि एक पहाड़ पर दो शेर नहीं रह सकते। शांतिप्रियता किसी व्यक्ति की आत्मा के लिए तो अच्छी हो सकती है, किंतु किसी देश की सुरक्षा के लिए यह घातक है। बौद्ध तिब्बत भी शांति के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता गंवा बैठा है। फिर भी विदेश मंत्रालय जैसे कुछ सीखने को राजी ही नहीं है। नेहरू चेतनाशून्य हो गए और तिब्बत जैसे छोटे राष्ट्र को नहीं बचा पाए। नेपाल ने भारत की कमजोरी को भांप लिया और चीन के कहर से बचने के लिए उसके साथ करीबी बढ़ा ली। यह भारत की विदेश नीति की पूर्ण विफलता ही कही जाएगी कि कभी भारत का साथी रहा नेपाल अब चीन के पाले में चला गया है। भूटान भी इसी राह पर बढ़ रहा है। उसे पता है कि हताश भारत उसकी रक्षा नहीं कर पाएगा।

सामूहिक अक्षमता के बोझ तले दबी नई दिल्ली व्यर्थ समय गंवा रही है, जबकि बीजिंग बार-बार भारत की सीमा में घुसपैठ कर रहा है। हालांकि चीन के किले में तिब्बत और सिनकियांग के रूप में दो बड़ी दरारें भी हैं। तिब्बत में असाधारण ढांचागत सुविधाएं विकसित करने और मोर्चे पर जल्द से जल्द सेना की डिवीजनें भेजने की क्षमता होने के बावजूद तिब्बत में चीन को विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय रक्षा मंत्रियों की असाधारण अक्षमता के चलते भारतीय सैन्य बलों का आधुनिकीकरण पिछले एक दशक से अटका हुआ है। फिर भी पश्चिमी तकनीक और पूर्वोत्तार में ढांचागत सुविधाएं खड़ी करने के मामले में देर से ही सही नई दिल्ली की पहल चीन की चिंता के प्रमुख विषय हैं। बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया है कि भारत जब भी अमेरिका के करीब होता है, चीन की धड़कनें बढ़ने लगती हैं। चीन की जापान, ताइवान और अन्य देशों के साथ दक्षिण चीन सागर में टकराव की स्थिति में अमेरिका ने हिफाजत का वायदा किया हुआ है। बौखलाया हुआ बीजिंग सबसे कमजोर लक्ष्य भारत-तिब्बत सीमा पर निशाना साध सकता है। चीन को पता है कि नई दिल्ली में नेतृत्व बेहद कमजोर है और वह किसी भी संकट की स्थिति में टकराव की हद तक नहीं जा सकता। इसके अलावा चीन भारत के सैन्य बलों और उपकरणों में कमी से भलीभांति परिचित है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि अफगानिस्तान से अमेरिका की विदाई के बाद वहां सामरिक शून्य पैदा होगा। ऐसे में चीन भारत को अफगानिस्तान से दूर रखने के साथ-साथ बिना एक भी गोली चलाए भारत के पूर्वी क्षेत्र में अधिक से अधिक जमीन हथियाना चाहता है।

घुटनों के बल झुका भारतीय नेतृत्व, उपकरणों से जूझ रही भारतीय सेना और भारत में अशांति के चलते चीन पाकिस्तान की सहायता से सीमा पर खाली पड़े भूभाग को हथियाने के लिए ललचा रहा है। भारतीय भूभाग में चीन की सैकड़ों घुसपैठों को नजरअंदाज करने के कारण सरकार ने चीन को लद्दाख क्षेत्र में 19 किलोमीटर अंदर तक घुसने को प्रोत्साहित किया है। चीन खेल के नियम बदलने पर जोर दे रहा है। वह जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के दावे का समर्थन करता है और इसे विवादित क्षेत्र बताता है। इस अनुचित हस्तक्षेप के कारण भारत को गिलगिट-बाल्टिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर कार्ड खेलने में दिक्कत आती है। भारत के भूभाग पर कब्जा करने के चीन के इरादों को नाकाम करने के लिए भारत को शांतिप्रियता के साथ-साथ मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है, जो युद्ध शुरू होने से पहले ही हार न मान ले। चीनी लॉबी और शांति के पुजारियों के इस प्रचार में सच्चाई नहीं है कि चीन के मुकाबले हमारी सेना की तैयारियां पूरी नहीं हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति और दमदार जनरलों के बल पर भारत पहले भी इससे काफी कम ताकत और तैयारियों के बल पर जीत चुका है। फिलहाल चीन लद्दाख से पीछे तो हट गया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं वह फिर से घुसपैठ नहीं करेगा। चीन की आक्त्रामकता का जवाब देने के लिए भारत को नीति बनानी होगी। तिब्बत में स्वतंत्रता के विद्रोह को भारत को नैतिक समर्थन देना चाहिए। चूंकि चीन और पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ मोर्चेबंदी कर ली है, इसलिए भारत को भी गिलगिट-बाल्टिस्तान में चल रहे संघर्ष को अपना नैतिक समर्थन देना चाहिए। अगर बलूचिस्तान स्वतंत्र घोषित हो जाता है तो चीन को ग्वादर बंदरगाह नहीं मिल पाएगा। जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और वियतनाम जैसे देशों के साथ भारत सामरिक साझेदारियों में निवेश करे। अमेरिका और पश्चिमी सहयोगियों के साथ निर्णायक राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक संबंध गहरे करे। अफगानिस्तान में हमारा निवेश बेकार नहीं जाना चाहिए।

भारत अफगानिस्तानको नैतिक समर्थन दे और वहां तालिबान को फिर से स्थापित न होने दे। इसमें रूस का सहयोग लिया जा सकता है। भारत को दक्षिण कोरिया, जापान और पश्चिमी सहयोगियों से व्यापार बढ़ाना चाहिए। चीन की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ने लगी है और उसके लिए भारत का विशाल बाजार बहुत मायने रखता है। हमें इस व्यापार कार्ड का कुशलता से इस्तेमाल करना चाहिए। भारत के लिए सैन्य व खुफिया क्षमताओं को तत्काल बढ़ाना बेहद जरूरी है। फिलहाल हमें मूल हथियार प्रणालियों का तुरंत आयात करना चाहिए। दीर्घकाल में भारत को सैन्य क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाते हुए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को आमंत्रण देना चाहिए। आधुनिक रक्षा उत्पादन क्षेत्र में एफडीआइ 49 प्रतिशत करने पर भी विचार करना चाहिए। चीन की भारत में घुसपैठ का तुरंत कड़ा जवाब देना जरूरी है। अगर अस्पष्ट सीमा के बहाने से चीनी सेना भारत में घुसपैठ करती है तो भारत को भी चीनी क्षेत्र में घुसपैठ करने में संकोच नहीं करना चाहिए। इन उपायों पर अमल करके ही भारत चीन की मनमानी पर अंकुश लगा सकता है, अन्यथा भारत अपनी जमीन के साथ-साथ साख भी गंवा बैठेगा।

[लेखक भरत वर्मा, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]

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