कौन मिटा सकता है इस जलती हुई मशाल को.



इस भारतीय शख्स ने दी थी आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती, लेकिन देश का ये एक नामी गणितज्ञ खो गया गुमनामियों में

आज को गणित दिवस है। गणित के क्षेत्र में भारत का योगदान अतुलनीय है। ऐसे ही एक गणितज्ञ है बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले महान गणितज्ञ डा वशिष्ठ नारायण सिंह। वशिष्ठ नारायण सिंह इन दिनों सीजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी की वजह से कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं, लेकिन एक जमाना था जब इनका नाम गणित के क्षेत्र में पूरी दुनिया में गूंजता था। ऐसा कहा जाता है कि डा सिंह ने आइंस्टीन के सिद्धांत E = MC2( इ= एमसी स्क्वायर) को चुनौती दी थी।
वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। यह गांव जिला मुख्यालय आरा से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। वशिष्ठ नारायण सिंह ने छठवीं क्लास में नेतरहाट स्कूल में एडमिशन लिया। इसी स्कूल से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और पूरे बिहार में टॉप किया। इंटर की पढ़ाई के लिए डा सिंह ने पटना साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया। इंटर में भी इन्होंने पूरे बिहार में टॉप किया। 
1960 के आस-पास बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का नाम पूरी दुनिया में था। तब देश-विदेश के दिग्गज भी यहां आते थे। उसी दौरान कॉलेज में एक मैथमेटिक्स कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इस कांफ्रेंस में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बार्कले के एचओडी प्रो जॉन एल केली भी मौजूद थे।
कांफ्रेंस में मैथ के पांच सबसे कठिन प्रॉब्लम्स दिए गए, जिसे दिग्गज स्टूडेंट्स भी करने में असफल हो गए, लेकिन वशिष्ठ नारायण सिंह ने पांचों सवालों के सटिक जवाब दिए। उनके इस जवाब से प्रो केली काफी प्रभावित हुए और उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आने को कहा। डा वशिष्ठ नाराय़ण सिंह ने अपनी परिस्थितियों से अवगत कराते हुए कहा कि वे एक गरीब परिवार से हैं और अमेरिका में आकर पढ़ाई करना उनके लिए काफी मुश्किल है। ऐसे में प्रो केली ने उनके लिए विजा और फ्लाइट टिकट का इंतजाम किया। इस तरह डा वशिष्ठ अमेरिका पहुंच गए। वशिष्ठ नारायण सिंह काफी शर्मिले थे, इसके बावजूद अमेरिका के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में उनकी काफी अच्छे से देखरेख की गई। यही से उन्होंने PhD करके डॉक्टरेट की उपाधी पाई। डा सिंह ने ‘साइकिल वेक्टर स्पेश थ्योरी’ पर शोध कार्य किया और पूरे दुनिया में छा गए। इस शोध कार्य के बाद डा सिंह वापस भारत आए और फिर दोबारा अमेरिका चले गए। तब इन्हें वाशिंगटन में एसोसिएट प्रोफेसर बनाया गया। इधर, घर वाले उनकी शादी का दबाव डालने लगे। दबाव की वजह से वे वापस भारत लौट आए। तब उन्हें खुद यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर डा केली और नासा ने रोकना चाहा, लेकिन वे नहीं माने और भारत वापस आ गए। 1971 में वापस आने के बाद इन्हें आईआईटी कानपुर में प्राध्यापक बनाया गया। महज 8 महिने काम करने के बाद इन्होंने बतौर गणित प्राध्यापक ‘टाटा इंस्टीच्युट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च’ ज्वाइन कर लिया। एक साल बाद 1973 में वे कोलकाता स्थित आईएसआई मे स्थायी प्राध्यापक नियुक्त किए गए।1973 में ही उनकी शादी बिहार के छपरा की रहने वाली वंदना रानी से हुई। शादी के तीन दिन बाद वंदना ग्रेजुएशन की परीक्षा देने अपने मायके गईं और फिर लौट कर नहीं आईं। इधर, डा सिंह कोलकाता अपने जॉब पर चले गए। 1974 में इन्हें पहली बार दौरा पड़ा, तब वे अपना खुद इलाज कराने गए। बाद में नेतरहाट ओल्ड ब्वॉय्ज एसोसिएशन के पहल पर इन्हें रांची स्थित मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती कराया गया। मानसिक बीमारी से जूझ रहे वशिष्ठ नारायण सिंह को तब और झटका लगा, जब उनकी पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया। जब पत्नी के सपोर्ट की जरूरत थी तब उन्हें तलाक मिल गया, ऐसे में उनकी बीमारी और बढ़ती गई। हाल-फिलहाल डा सिंह अपनी बीमारी से जूझ रहे हैं। गाहे-बगाहे इनकी मदद के लिए कुछ लोग सामने आते हैं, लेकिन निरंतरता नहीं बने रहने की वजह से उनकी बीमारी जस की तस बनी हुई है। वशिष्ठ नारायण सिंह की चिकित्सा भी हुई, लेकिन उनकी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ। कई वर्षों तक तो ये लापता थे, पर फिर किसी तरह मिल गए। अफसोस की बात है कि न तो बिहार सरकार और न ही केंद्र सरकार ने इनकी पर्याप्त चिकित्सा की व्यवस्था की। परिवार के पास इतने साधन नहीं हैं कि वह देश अथवा विदेशों के बड़े संस्थानों में इनकी चिकित्सा करा सके। उल्लेखनीय है कि आज जटिल से जटिल मानसिक रोगों का इलाज संभव है।

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